कैलाश बाबू योग

यह ब्लॉग योग की सटीक जानकारी देने के लिए है। योगाभ्यास करने के लिए किसी योग्य योग गुरु का परामर्श आवश्यक है।

शनिवार, दिसंबर 18, 2021

सूर्यभेदी प्राणायाम विधि, लाभ व सावधानियां


सूर्यभेदी प्राणायाम


सूर्यभेदी प्राणायाम शरीर में गर्मी उत्पन्न करता है और सूर्य नाड़ी, दांए स्वर अर्थात पिंगला नाडी को सक्रिय करता है। 


प्राणायाम से पूर्व तैयारी

प्राणायाम से पहले कुछ आसनों का अभ्यास अवश्य कर लेना चाहिए।

अगर आपको सिर्फ प्राणायाम का ही अभ्यास करना है तो, कुछ ऐसे व्यायामों का अभ्यास अवश्य कर लेना चाहिए जो, आपके पैर, कमर और गर्दन से संबंधित हो, जिससे कि आप किसी एक ध्यान के आसन में लंबे समय तक बैठ सके..

उसके बाद ध्यान के किसी एक आसन में बैठ जाएं। ध्यान रहे जमीन समतल हो और नीचे मेट, कंबल, चटाई... इत्यादि बिछा ले। खाली जमीन पर प्राणायाम नहीं करना चाहिए।


अपना संपूर्ण ध्यान स्वास पर लगाते हुए अपने शरीर के प्रति सजग हो जाइए। शरीर, मन और स्वास की एकाग्रता होने पर प्राणायाम का अभ्यास प्रारंभ कीजिए...


विधि


किसी एक आरामदायक आसन में बैठ जाएं। पद्मासन और सिद्धासन सर्वश्रेष्ठ आसन है। बस ध्यान रहे आप की कमर और गर्दन सीधी होनी चाहिए।


3-4 सामान्य लंबा और गहरा श्वास लें मन मस्तिष्क को शांत करने की कोशिश करें। उसके बाद प्राणायाम मुद्रा बनाएं।


सूर्यभेदी प्राणायाम, surya bhedi pranayama
प्राणायाम मुद्रा

हाथ की दोनों अंतिम उंगलियों से चंद्र स्वर अर्थात बाय नासिका रंध्र को बंद करें। सूर्य श्वर अर्थात दायने स्वर से, धीरे-धीरे एक ही लय में श्वास लें और कुंभक लगाएं अर्थात स्वास रोके।


स्वास की उत्तेजना होने पर, बाएं नासिका को बंद करते हुए दाएं नासिका रंध्र से स्वास धीरे-धीरे एक ही लय में निकाल दें। 


सूर्यभेदी प्राणायाम की यह एक आवर्ती पूरी हुई।


ध्यान रहे स्वास में किसी प्रकार का झटका या कम या धीरे नहीं होनी चाहिए। एक ही लय में श्वास लें और एक ही लय में धीरे-धीरे श्वास छोड़ें।


प्रारंभ में 8 से 10 राउंड सूर्यभेदी प्राणायाम का अभ्यास करें। इनको धीरे-धीरे बढ़ाकर 25 से  30 भी कर सकते है।


प्रारंभ में आपको इतना ही करना है। इसमें दक्षता प्राप्त करने के बाद स्वास के साथ अनुपात को जोड़ना है।


 सर्वप्रथम 1:1:1 का अनुपात रखना है। अर्थात जितनी देर में आप श्वास लें उतनी देर तक रोक कर रखे अर्थात कुंभक लगाएं और उतने ही समय में श्वास को निकाले।


 उसके बाद अनुपात 1:2:2 का...


अंत में प्राणायाम पर दक्षता प्राप्त होने के बाद 1:4:2 का अनुपात रखे अर्थात जितने समय में आपने स्वास लिया उसके चार गुना स्वास रोके और उसके दुगने समय मे स्वास को निकाले...


लाभ


सर्दियों के समय में इसका का अभ्यास करने से यह हमें सर्दी से बचाता है। यह शरीर में गर्मी उत्पन्न करता है।


यह वात दोषों का निवारण करता है।


मंदबुद्धि, जड़ और अंतर्मुखी लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण प्रणायाम है।


ध्यान से पहले सूर्यभेदी प्राणायाम का अभ्यास बहुत ही फायदेमंद होता है।


यह पिंगला अर्थात दाएं स्वर को क्रियाशील बनाकर प्राण शक्ति को जागृत करता है।


निम्न रक्तचाप, नपुसंकता, पेट में कीड़ों के लिए यह बहुत ही शक्तिशाली प्राणायाम है। 


सूर्यभेदी प्राणायाम पिंगला नाड़ी का भेदन करते हुए बुढ़ापे और मृत्यु पर विजय प्राप्त कर कुंडलिनी सक्ति का जागृत करता है।



सावधानियां


सूर्यभेदी और चंद्रभेदी प्राणायाम का अभ्यास एक ही दिन में नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह दोनों विपरीत प्राणायाम है। हमारे शरीर पर विपरीत प्रभाव डाल सकते है।


20 मिनट से अधिक सूर्यभेदी प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए अन्यथा यह श्वसन चक्र में असंतुलन पैदा कर सकता है।


हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मिर्गी… के रोगियों को यह अभ्यास नहीं करना चाहिए।


भोजन के तुरंत बाद सूर्यभेदी प्राणायाम का अभ्यास कभी ना करें, क्योंकि यह पाचन क्रिया से जुड़े ऊर्जा प्रवाह को रोक कर, उसमें गड़बड़ी उत्पन्न कर सकता है।


यह एक शक्तिशाली प्राणायाम है। इसका अभ्यास संपूर्ण जानकारी लेने के बाद या कुशल योग शिक्षक के सानिध्य में ही करना चाहिए।


विशेष


प्राणायाम करते समय आपका स्वास धीमा, गहरा और सहज होना चाहिए। इसमें किसी भी प्रकार का झटका व्यवधान या जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।


स्वास पूरा लेना चाहिए और पूरा छोड़ना चाहिए। कुंभक भी उत्तेजना होने तक करना चाहिए अर्थात स्वास को रोकना।


प्राणायाम का संपूर्ण लाभ लेने के लिए 1:4:2 के अनुपात में जालंधर बंध, मूलबंध और उड्डियान तीनो बंध के साथ करना चाहिए। 


स्रोत:- घेरंड संहिता, महायोगी घेरंड द्वारा लिखा गया हठयोग पर सुप्रसिद्ध ग्रंथ।


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धन्यवाद


शुक्रवार, सितंबर 17, 2021

योग और ब्रह्मचर्य

 ब्रह्मचर्य पालन के बिना, योग करना व्यर्थ है। आज हम कुछ महत्वपूर्ण बातें जानने की कोशिश करेंगे। जो योग और ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए जरूरी है…


योग और ब्रह्मचर्य
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अगर आप बिना योगाभ्यास के ब्रह्मचर्य का पालन करोगे तो आपका ब्रह्मचर्य खंडित होना तय है क्योंकि वीर्य एक ऊर्जा है और ऊर्जा का काम है, नष्ट होना। योग से वीर्य उर्दगामी होकर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। और सहस्रार चक्र तक पहुंचकर समाधि की स्थिति को प्राप्त करता है। जो बिना योग अभ्यास के असंभव है।


योग व ब्रह्मचर्य का अभ्यास करने वाले व्यक्ति को लहसुन-प्याज, मदिरापान, धूम्रपान, मांस, अंडा और अधिक गर्म मसालो का सेवन तुरंत बंद कर देना चाहिए। शाकाहारी व सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए।


नमक का कम से कम सेवन करना चाहिए, लंबे समय के ब्रह्मचर्य और योगाभ्यास के लिए नमक का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए।


सुबह 3:00 से 4:00 बजे उठकर ध्यान व योग अभ्यास अवश्य करना चाहिए। क्योंकि ब्रह्म मुहूर्त में शरीर की उत्तेजना चरम पर होती है। उस उत्तेजना का फायदा योगाभ्यास करके उठाना चाहिए ना कि स्वपनदोष और हस्तमैथुन कर ऊर्जा को नष्ट करना चाहिए।


रात्रि का भोजन हल्का और बिना मसालो वाला होना चाहिए। रात्रि का भोजन सोने से कम से कम 2 से 3 घंटे पहले कर लेना चाहिए और हो सके तो सूर्य अस्त होने से पहले रात्रि का भोजन करेंगे तो यह सर्वोत्तम होगा।


अगर आप का वीर्य पतला है तो आपको वीर्य गाढ़ा करना होगा। इसके लिए आप आंवला चूर्ण और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाकर रात में खा कर सो जाएं। एक हफ्ते में ही असर दिखेगा अगर आप का वीर्य पतला है तो, आपको स्वपनदोष 100% होगा ही होगा।


रात्रि में लंगोट पहन कर सोना चाहिए। इसके बहुत सारे फायदे हैं इस पर एक संपूर्ण ग्रंथ लिखा जा सकता है।


योगाभ्यास में आप ब्रह्मचर्य पालन के लिए मूलबंध, उड्डियान और जालंधर बंध ये तीनों बहुत फायदेमंद है। इन तीनो को एक साथ लगाएं तो कहलाता है त्रिबन्ध या महाबंध...


योगासनों में विपरीत करणी के जितने भी आसन हैं ब्रह्मचर्य व्रत के लिए बहुत महत्वपूर्ण आसन है। जैसे शीर्षासन, विपरीत करणी आसन व मुद्रा, सर्वांगासन, हलासन... इत्यादि।


प्राणायाम में नाड़ी शोधन प्राणायाम, सर्दियों में सूर्यभेदी प्राणायाम, और गर्मियों में चंद्रभेदी प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, बहुत ही असरदार प्राणायाम है। 


ध्यान रहे योगाभ्यास सभी व्यक्तियों की शारीरिक स्थिति को देखते हुए अलग अलग हो सकते है। जो अभ्यास एक व्यक्ति को फायदा पहुंचा है वह दूसरे को नुकसान भी पहुंचा सकते है। इसलिए योगाभ्यास कभी भी बिना जानकारी के नहीं करना चाहिए।



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रविवार, अगस्त 15, 2021

मयूर आसन योग विधि, लाभ और सावधानिया mayurasana Yoga Method, Benefits and Precautions

मयूर आसन, मेरा सबसे प्रिय आसन है। आज मैं आपको इसके बारे में संपूर्ण जानकारी दूंगा।


मयूरासन एक संतुलन और कठिन आसनों में से एक है। यह जितना कठिन है इसके फायदे भी उतने ही आधिक है। अगर आप एक बार इसको सीख लेते हैं तो, संपूर्ण शरीर को स्वस्थ रख सकते है। यह विष को भी पचाने की क्षमता रखता है।



आसन परिचय Posture introduction


mayurasana
mayurasana

प्रत्येक आसन किसी न किसी जीव-जंतु, पेड़-पौधे या किसी ऋषि-मुनि के नाम पर होता है। जिस आसन का अभ्यास हम करते है, उसी के गुण हमारे शरीर में आने लगते है…



मयूर आसन,  संस्कृत में मोर को मयूर बोलते है। इसलिए मयूरासन मोर पक्षी के नाम पर पड़ा है। जिस तरह से मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है, उसी तरह से मयूर आसन भी हमें बहुत सारे स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। यह हमारे पाचन तंत्र से लेकर संपूर्ण शरीर के विकारों को दूर करने की क्षमता रखता है।




आसन से पूर्व तयारी pre-asana preparation

 जमीन पर कुछ बिछाकर, अपने संपूर्ण शरीर को शिथिल करें, आंखें बंद कर वज्रासन में बैठ जाएं, 2 से 3 लंबी गहरी सांस लें, अपने मन में विचार करें कि मैं मयूर आसन का अभ्यास करने जा रहा हूं। 



विधि Method

  • वज्रासन से जमीन पर घुटनों के बल बैठ जाएं, पंजो को एक साथ मिलाकर रखें और घुटनों को अलग-अलग। 

  • सामने की ओर झुके, दोनों हथेलियों को घुटनों के बीच जमीन पर इस प्रकार रखें कि उंगलियां पंजो की ओर रहे।

  •  थोड़ा सा आगे की ओर झुकते हुए कहानियों को नाभि के दाएं-बाएं टीका दे।

  •  अब दोनों पैरों का संतुलन बनाते हुए, सीधा करके पीछे उठा दे।  प्रारंभ में घुटनों को मोड़कर संतुलन बनाने का प्रयास करें, जब इसमें दक्षता प्राप्त कर लें तो धीरे से पैरों को सीधा कर दें।

  •  ध्यान रहे पैर जमीन के समानांतर रहे और सर उठा हुआ। अंतिम स्थिति में शरीर का भार उदर की मांसपेशियों पर रहेगा वक्ष पर नहीं।

  • अब शरीर का संपूर्ण भाग हथेलियों पर संतुलित रहेगा।

  • प्रारंभ में कुछ सेकंड के लिए ही अभ्यास करें, फिर वापस आ जाएं। दो से तीन बार अभ्यास करें प्रारंभ में ज्यादा अभ्यास ना करें।

  • प्रारंभ में आप कुछ उचे (1 से 2 फूट)  स्थान पर भी अभ्यास कर सकते है। ऐसा करने से संतुलन आसानी से बन जाता है।


mayurasana
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श्वास-प्रश्वास Breathing

श्वास छोड़ते हुए शरीर को ऊपर उठाये, श्वास लेते हुए वापस आये। प्रारम्भ में आसन रोकते समय श्वास अंदर ही रोककर रखें। आसन में दक्षता प्राप्त करने के बाद श्वास नार्मल रख सकते है।




आसन में ध्यान व सजगता meditation and alertness in posture

प्रत्येक आसन में शरीर के विशेष अंगों व चक्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। मयूरासन में अपने संपूर्ण शरीर के संतुलन पर ध्यान केंद्रित करें और अपने शरीर के संतुलन के प्रति सजग हो जाएं।



आसन क्रम

  •  आसनों को करने का विशेष क्रम होता है, आसनो को सही क्रम में करने से विशेष लाभ होता है और गलत क्रम करने से हानि… 


  • मयूर आसन का अभ्यास सभी आसनों के अंत में करना चाहिए। मयूरासन के बाद कभी भी विपरीत करणी अर्थात सर के बल किये जाने वाले आसनों का अभ्यास नहीं करना चाहिए।


  •  मयूरासन हमारे शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालकर रक्त से अलग कर देता है जो, विपरीत आसन करने से मस्तिष्क की तरफ आ जाते हैं और हमारे मस्तिष्क को क्षति पहुंचा सकते है।


mayurasana
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सावधानियां Precautions

  • उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, हर्निया, अल्सर वाले व्यक्तियों को मयूरासन नहीं करना चाहिए।


  • किसी भी बीमारी, बीमारी से आई कमजोरी की स्थिति और गर्भावस्था में यह आसन वर्जित है।


  • अंतिम स्थिति में आगे गिरना खतरनाक हो सकता है संतुलन का विशेष ध्यान रखें।


  • मयूर आसन का अभ्यास करने से पहले कलाइयों के सूक्ष्म व्यायाम कर लेना चाहिए। कलाइयों को क्लॉक वाइज और एंटी क्लॉक वाइज घुमाना चाहिए। ऐसा करने से आपकी कलाइयों में झटका नहीं आएगा। क्योंकि मयूरासन में आपके सम्पूर्ण शरीर का भाग कलाइयों और हाथों पर आ जाता है।


  • शरीर को ऊपर उठाते समय ध्यान रखें, आप का मुंह जमीन से न लगे। अन्यथा चोट लग सकती है। 


  • आसन का अभ्यास करते समय फाइनल पोज में सर को उठा कर रखें, अन्यथा खून का प्रवाह आपके मस्तिष्क की तरफ आने से आप को चक्कर आ सकता है और आप को चोट लग सकती है।


  • यह कठिन और एडवांस आसान है इसको सीखने में समय लगता है जल्दबाजी करने का प्रयास न करें, धीरे-धीरे प्रतिदिन अभ्यास करें मयूरासन आपसे लगने लगेगा।



लाभ benifit

  • यह रक्त से विषैले पदार्थों को तीव्रता से दूर करता है, जिससे चर्म रोग, जैसे, फोड़े-फुंसी दूर होते है।


  • सभी पाचन अंगों की मालिश करता है।


  • उदर, वायु, कब्ज, मधुमेह, यकृत और गुर्दे की निष्क्रियता मैं बहुत ही फायदेमंद है।


  • यह अंत स्रावी ग्रंथियों में सामंजस्य लाता है। मानसिक एवं शारीरिक संतुलन विकसित करता है। संपूर्ण शरीर की पेशियों को मजबूत बनाता है।


  • यह मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण आसान है इससे इंसुलिन बनाने वाली पैंक्रियास ग्रंथि सक्रिय हो जाती है।


  • शरीर में पहले से संचित विषैले पदार्थ, जलकर नष्ट हो जाते है।


  • त्रिदोष वात, पित्त और कफ के बीच संतुलन एवं सामंजस्य लाता है।


  • जिस तरह मोर सांप को मारकर खा जाता है और उसके विष को पचा देता है। इसी तरह मयूरासन हमारे शरीर से विषाक्त पदार्थों को मारकर भस्म कर देता है।


  • हमारे पाचन संस्थान, रक्त की शुद्धि और हमारे संपूर्ण शरीर के लिए यह बहुत ही अच्छा आसन है, यह मेरा स्वयं का अनुभव भी है, क्योंकि यह मेरा प्रिय आसन है।



विशेष special

  • स्त्रियों के शरीर की बनावट अलग होने के कारण उन्हें मयूरासन कठिन प्रतीत हो सकता है। उन्हें इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए या विशेष देखरेख में करना चाहिए।


  •  आसन में शरीर को उठाते समय आगे गिरने का डर रहता है। जिससे आपके सर या मुंह में चोट लग सकती है। इसके लिए आप प्रारंभ में आगे कुछ गद्दा या कंबल बिछाकर रख सकते है।


  •  जिस तरह से मोर सांप को खा कर उसके विष को भी पचा जाता है, उसी तरह से मयूरासन का प्रतिदिन अभ्यास करने से हमारे शरीर में जहर को पचाने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है। यही इस आसन का विशेष गुण है। यह आसन हमारे रक्त को बहुत जल्दी शुद्ध करता है, रक्त से विषैले तत्व को निकाल बाहर करता है।


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धन्यवाद


रविवार, मई 30, 2021

मंडूक आसन योग विधि, लाभ और सावधानियां Mandook Asana Yoga Method, Benefits and Precautions

 मंडूक आसन योग विधि, लाभ और सावधानियां

Mandook Asana Yoga Method, Benefits and Precautions


कोई भी आसन किसी न किसी जीव-जंतु, पेड़-पौधे या किसी ऋषि-मुनि के नाम पर होता है। जिस आसन का अभ्यास हम करते है, उसी के गुण हमारे शरीर में आने लगते है...


 इसी तरह से मंडूकासन एक मेंढक के नाम पर रखा है। मंडूक अर्थात मेंढक, इसको इंग्लिश में फ्रॉक पोज भी बोलते है। 



mandukasana



विधि Method


  • किसी भी योगासन का अभ्यास करने से पहले अपने संपूर्ण शरीर को शिथिल करें और दो से तीन बार अपनी आती और जाती स्वास को देखें व उसे लयबद्ध करें। उसके बाद आसन करने के लिए तैयार हो जाएं…
                                     
  • मंडूकासन का अभ्यास करने के लिए सर्वप्रथम वज्रासन में बैठ जाएं।


  •  शरीर की समस्त मांसपेशियां शिथिल करने के बाद अपने दोनों हाथों की मुट्ठी इस तरह बनाएं अंगूठा अंदर की तरफ रहे

  •  अंगूठे वाला हिस्सा नाभि के दाएं और बाएं रखें।

mandukasana pre pose

  •  ध्यान रहे दांये हाथ की मुट्ठी नाभि के दायें तरफ और बाएं हाथ की मुट्ठी नाभि के बाएं तरफ रहे। नाभि दोनों मुट्ठियों के बीच में आ जाए।


  •  फिर दोनों नासिका से श्वास भरें और श्वास छोड़ते हुए आगे झुके।


  •  आगे झुकते हुए आपके पेट पर दबाव बढ़ेगा दबाव इतना ही बनाए जितनी सहनशीलता हो, अनावश्यक दबाव ना डालें।


  •  अंत में गर्दन को उठाकर रखें अन्यथा आप को चक्कर आ सकता है।


  •  अंतिम स्थिति में आते ही स्वास सामान्य कर दें और यथासंभव अपनी क्षमता के अनुसार 30 सेकंड से 1 मिनट तक रोकने का प्रयास करें।


  •  धीरे-धीरे इस समय को बढ़ाकर 3 से 5 मिनट तक कर सकते है। 


  • अंत में श्वास भरते हुए वज्रासन में वापस आ जाएं।


  •  अंत में मुट्ठियों को हटाए व हाथों की उंगलियों को खोलकर घुटनों पर रखें।


  •  कुछ सेकंड विश्राम करें इसके बाद दोबारा से मंडूक आसन का अभ्यास कर सकते है। या अन्य अभ्यास कर सकते है।


mandukasana

                                     
लाभ Benefits 

  • मंडूकासन हमारी पेनक्रियाज, एड्रिनल और प्रोटेस्ट ग्रंथि के श्राव को संतुलित करता है। जिसमें पैंक्रियाज बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रंथि है, जो इंसुलिन बनाती है। 


  • मधुमेह में पैंक्रियास ग्रंथि इंसुलिन बनाना बंद कर देती है। जिसको मंडूकासन सक्रिय करता है और पैंक्रियास ग्रंथि इंसुलिन बनाना शुरु कर देती है। इसलिए मधुमेह के रोगियों के लिए मंडूकासन बहुत ही महत्वपूर्ण आसन है।


  • कमर में किसी भी प्रकार का दर्द, रीढ़ की हड्डी में तनाव को मंडूकासन दूर करता है। परंतु अत्यधिक दर्द होने पर मंडूक आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।


  • पेट की चर्बी को कम करता है


  •  साइटिका की नस नाड़ियों को मजबूती प्रदान करता है।


  • निरंतर अभ्यास से स्लिप डिस्क का खतरा खत्म हो जाता है।


  •  जांघ व कूल्हे के जोड़ों को मजबूती प्रदान करता है। 


  • हटी हुई नाभि को अपनी जगह पर लाने में मदद करता है। 


  • पेट के अंगों की मालिश करता है, व पेट की अतिरिक्त वसा को गायब करता है।


  •  पेट में कब्ज, गैस, अपच... मैं बहुत लाभदायक है।


  •  यह तनाव, चिंता, अवसाद... के रोगियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण आसन है।


सावधानियां  Precautions



  • वैसे मंडूकासन पीठ दर्द में लाभदायक है, लेकिन अत्यधिक दर्द होने पर आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।


  •  हार्ट के पेशेंट या बाईपास सर्जरी के मरीजों को मंडूक आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।


  •  अल्सर के मरीजों को मंडूक आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।


  • पेट पर अधिक दबाव नहीं डालना चाहिए।


  •  हाई बीपी, अनिद्रा और माइग्रेन के रोगियों को मंडूक आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।


  •  जिनके घुटनों में दर्द हो उन्हें मंडूक आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।


  •  गर्भवती स्त्रियों को मंडूक आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए


  •  कोई भी समस्या होने पर योग्य योग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।


 #kailashbabuyoga


 धन्यवाद










शुक्रवार, मई 14, 2021

शंक प्रक्षालन योग विधि, लाभ और सावधानियां, Shankhaprakshalana yoga

 शंख प्रक्षालन का अर्थ

meaning of Shankhaprakshalana


 आंतों की बनावट शंख की तरह होती है, प्रक्षालन अर्थात सफाई, आंतों की सफाई को शंख प्रक्षालन कहते है।


आजकल पेट की समस्या आम हो गई है। शहर में रहने वाले लोगों को अधिकतर पेट की समस्याओं से जूझते देखा जा सकता है। इसी बात का फायदा उठाकर आजकल बहुत सारी कंपनियां मार्केट में अपने प्रोडक्ट उतार चुकी है।


लेकिन इनके प्रोडक्ट से अल्पकालीन लाभ तो मिल जाता है। परंतु दीर्घकालीन लाभ नहीं मिल पाता क्योंकि, यह समस्या कोई बीमारी नहीं है, यह हमारी निष्क्रिय जीवनशैली और आधुनिक खान-पान की वजह से, हमारे शरीर में धीरे-धीरे घर करती है।


आज मैं आपको पेट और आंतों की सफाई के लिए योग का बहुत ही कारगर नुस्खा बताऊंगा।


हठ योगिक ग्रंथों में षट्कर्म पर बहुत अधिक बल दिया गया है। षटकर्म 6 क्रियाओं का एक समूह है। जो हमारे शरीर शुद्धि के लिए होती है। जिसमें से एक है शंख प्रक्षालन जो हमारी आंतो और पेट की सफाई के लिए होती है। इसको वरिसार के नाम से भी जाना जाता है। 


घेरण्ड संहिता में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है।


शंख प्रक्षालन दो प्रकार का होता है, लघु शंख प्रक्षालन और दीर्घ शंख प्रचालन


मैं आपको सिर्फ जानकारी दूंगा। यह क्रिया किसी योग्य योग गुरु के सानिध्य में ही करें या अपने निजी रिस्क पर करें। इसको मात्र जानकारी ही समझे।


लघु शंख प्रक्षालन


एक  दिन पहले रात्रि में हल्का और अल्प आहार लेना चाहिए।


सुबह उठकर शौच आदि से निवृत्त होकर, 2 से 3 लीटर पानी गुनगुना करें और उसमें नमकीन होने तक नमक मिलाएं अर्थात 1 लीटर में एक बड़ा चम्मच नमक।


कंठ तक भर कर पानी पिये और इन पांच आसनों का अभ्यास करें। पानी घुट घुट कर ना पिए एक ही सांस में सारा पानी पी जाएं।


ताड़ासन


tadasana




तिर्यक ताड़ासन




कटिचक्रासन



तिर्यक भुजंगासन





और उदर आकर्षण आसन





इन आसनों का अभ्यास करने से आपके पेट का पानी पच जाएगा और वह आंतो में चला जाएगा। यह आंतो में सूखा, चिपका, टाइट… हुए मल को घोलकर मलद्वार से बाहर निकाल देगा।


यह अभ्यास आपको 2 से 3 लीटर पानी पीने तक करना है। अर्थात दो से तीन आवर्ती करनी है और प्रत्येक आसन को कम से कम 10 सेकंड के लिए रोक कर रखना है। 


दो से तीन बार बिना रुके पांचो आसनों का क्रम दोहराए..


हो सकता है पहले दिन आप का प्रेशर ना बने। लेकिन एक से 2 घंटे बाद आपको प्रेशर बहुत तेज बनेगा। इसलिए इस क्रिया का अभ्यास छुट्टी वाले दिन या जिस दिन घर पर हो उस दिन ही करें।


यह लघु शंख प्रक्षालन है। कब्ज की समस्या होने पर इसका आप हफ्ते में एक बार अभ्यास कर सकते है। लेकिन जैसे आपकी समस्या समाप्त होती है, अभ्यास महीने में एक बार करना प्रारंभ कर दें। अन्यथा नमक की अधिक मात्रा से आपको दूसरे नुकसान हो सकते है। लेकिन महीने में एक बार अभ्यास करने से आपको कोई नुकसान नहीं होगा।


महीने में एक बार अभ्यास करने से आपकी आंते संपूर्ण तरीके से खाली हो जाएंगी और उन्हें नई ऊर्जा व स्फूर्ति मिलेगी जो आपके संपूर्ण शरीर को निरोग रखने के लिए काफी है।


दीर्घ शंख प्रक्षालन


प्रक्रिया लघु शंख प्रक्षालन वाली ही रहेगी। गुनगुना नमक का पानी पीकर वहीं पांच आसनों का अभ्यास करना है। 


लेकिन अभ्यास आपको प्रेशर बनने तक करना है।  आसनों के बीच में विश्राम नहीं करना है। हो सकता है दो से तीन आवर्ती में प्रेशर बन जाए, अगर नहीं बनता है तो चार से पांच आवर्ती करें। क्योंकि जिन की आंतों में मल सूखा हुआ रहता है उनको प्रेशर थोड़ा लेट से बनता है।


एक से दो आवर्तीओं के बाद फिर से पानी पिए, बीच-बीच मे जैसे ही लगे पेट हल्का हो गया है और पानी पी लें...


प्रेशर बनने के बाद शोच जाएं और जोर बिल्कुल भी ना लगाएं। आपकी आंतो से मल निकलना शुरू हो जाएगा। वापस आने के बाद यही प्रक्रिया फिर से दोहराएं। इस बार आपको एक से दो आवर्ती में ही प्रेशर बन जाएगा। फिर से शोच जाएं और यह प्रक्रिया जब तक दोहराते रहें जब तक आपके मलद्वार से साफ पानी ना निकलने लगे।


 आंतो से पिला मटमैला पानी आने के बाद अभ्यास बंद कर दें।


साफ पानी आने के बाद एक बार बिना नमक के गुनगुने पानी से कुंजल क्रिया का अभ्यास करें। उसके बाद अभ्यास बंद कर दें और शरीर को पूर्ण विश्राम दें।


शंख प्रक्षालन करने के बाद नेति करने से विशेष लाभ होता है।


इस अभ्यास से आपकी संपूर्ण आंतों की सफाई हो जाएगी और आपकी आंतो से चिकनाहट, गंदगी, मल संपूर्ण तरीके से साफ हो चुका होगा।


सावधानियां Precautions of Shankhaprakshalana yoga


  • अभ्यास के बाद पूर्ण विश्राम बहुत जरूरी है। कम से कम 30 से 45 मिनट तक शवासन में लेटे रहे। सोए नहीं, नहीं तो सर दर्द और सर्दी लग सकती है। 


  • अभ्यास के बाद सामान्य वातावरण में रहे पंखे के नीचे या ठंडी हवा के सामने बिल्कुल ना जाएं सर्दियों के समय शरीर में गर्मी बनाए रखें।


  • इस क्रिया का अभ्यास किसी जानकार के सानिध्य में ही करें।


  • उच्च रक्तचाप के रोगी इस क्रिया का अभ्यास बिल्कुल भी ना करें।


  • कुछ दिनों के लघु शंख प्रक्षालन के अभ्यास से आप स्वयं से भी इसका अभ्यास कर सकते है। बस थोड़ी सी सावधानी और पूर्ण जानकारी होना जरूरी है।


  • अभ्यास के बाद शरीर को पूर्ण विश्राम देना चाहिए यह अभ्यास छुट्टी वाले दिन ही करना चाहिए।


  • अभ्यास करने के बाद 30-45 मिनट बाद बिना नमक की मूंग दाल और चावल की खिचड़ी मैं अधिक मात्रा में घी डालकर खाना चाहिए।


  •  खिचड़ी खाने के लगभग 6 घंटे बाद  दोबारा से बिना नमक की खिचड़ी खानी चाहिए।  अगर भूख नहीं लगती है फिर भी आप को भरपेट खिचड़ी खानी है।


  • ध्यान रहे 45 मिनट से 1 घंटे के अंतराल में खिचड़ी खा लेनी चाहिए। आंतो को ज्यादा देर खाली ना रखें अन्यथा आप को हानि हो सकती है।


  •  खिचड़ी खाने के बाद पुनः विश्राम करें जिस दिन शंक प्रक्षालन का अभ्यास करें, उस दिन कठिन परिश्रम बिल्कुल भी ना करें शरीर व आंतों को पूर्ण विश्राम दे।


  • अभ्यास करने के बाद 3 से 4 घंटे नींद ना लें अन्यथा आपके सर दर्द हो सकता है।


  • अधिक सर्दी और गर्मी होने पर शंख प्रक्षालन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।


  • दीर्घ शंख प्रक्षालन का अभ्यास महीने में एक बार ही करना चाहिए। जिन लोगों को कब्ज की बहुत ज्यादा समस्या है  उंन्हे लघु शंख प्रक्षालन हप्ते में एक या दो बार करना चाइये।


लाभ benifit of Shankhaprakshalana yoga


  •  यह पेट की समस्त समस्याओं का नाश करता है। जैसे आपच, कब्ज, पित्त की अधिकता, गैस... इत्यादि।


  •  यकृत और अन्य पाचन अंगों व ग्रंथियों को पोषण प्रदान करता है। 
  •  मधुमेह, मोटापा, रक्त में वसा की अधिकता, कोलेस्ट्रॉल के लिए बहुत ही रामबाण प्रक्रिया है।


  •  एलर्जी प्रतिरक्षा संबंधी समस्या को दूर कर इम्युनिटी और स्टेमिना को बढ़ाने में मददगार है।


  • कफ की अधिकता को दूर करता है।


  •  लंबे समय से चली आ रही सर्दी गर्मी साइनोसाइटिस मे लाभ प्रदान करता है। 


  • रक्त का शुद्धिकरण करता है।


  •  चर्म रोग, मुहासे, फोड़े-फुंसी, खाज-खुजली... को दूर करता है।


  •  यह हमारे संपूर्ण प्राणशक्ति को ऊर्जावान व नाड़ियों के अवरोधों को दूर करता है।


  •  सातों चक्र को ऊर्जा प्रदान करता है और उन में सामंजस्य स्थापित करता है।


  •  यह सूक्ष्म रूप में भी काम करता है, चेतना के लिए उच्च अवस्था का मार्ग प्रशस्त करता है। 


  • शंक प्रक्षालन का अभ्यास करने के बाद किया गया कोई भी योग अभ्यास अधिक फल प्रदान करता है। क्योंकि हमारी आंते संपूर्ण तरीके से स्वच्छ व साफ हो चुकी होती है।


#kailashbabuyoga


धन्यवाद