कैलाश बाबू योग

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शनिवार, दिसंबर 18, 2021

सूर्यभेदी प्राणायाम विधि, लाभ व सावधानियां


सूर्यभेदी प्राणायाम


सूर्यभेदी प्राणायाम शरीर में गर्मी उत्पन्न करता है और सूर्य नाड़ी, दांए स्वर अर्थात पिंगला नाडी को सक्रिय करता है। 


प्राणायाम से पूर्व तैयारी

प्राणायाम से पहले कुछ आसनों का अभ्यास अवश्य कर लेना चाहिए।

अगर आपको सिर्फ प्राणायाम का ही अभ्यास करना है तो, कुछ ऐसे व्यायामों का अभ्यास अवश्य कर लेना चाहिए जो, आपके पैर, कमर और गर्दन से संबंधित हो, जिससे कि आप किसी एक ध्यान के आसन में लंबे समय तक बैठ सके..

उसके बाद ध्यान के किसी एक आसन में बैठ जाएं। ध्यान रहे जमीन समतल हो और नीचे मेट, कंबल, चटाई... इत्यादि बिछा ले। खाली जमीन पर प्राणायाम नहीं करना चाहिए।


अपना संपूर्ण ध्यान स्वास पर लगाते हुए अपने शरीर के प्रति सजग हो जाइए। शरीर, मन और स्वास की एकाग्रता होने पर प्राणायाम का अभ्यास प्रारंभ कीजिए...


विधि


किसी एक आरामदायक आसन में बैठ जाएं। पद्मासन और सिद्धासन सर्वश्रेष्ठ आसन है। बस ध्यान रहे आप की कमर और गर्दन सीधी होनी चाहिए।


3-4 सामान्य लंबा और गहरा श्वास लें मन मस्तिष्क को शांत करने की कोशिश करें। उसके बाद प्राणायाम मुद्रा बनाएं।


सूर्यभेदी प्राणायाम, surya bhedi pranayama
प्राणायाम मुद्रा

हाथ की दोनों अंतिम उंगलियों से चंद्र स्वर अर्थात बाय नासिका रंध्र को बंद करें। सूर्य श्वर अर्थात दायने स्वर से, धीरे-धीरे एक ही लय में श्वास लें और कुंभक लगाएं अर्थात स्वास रोके।


स्वास की उत्तेजना होने पर, बाएं नासिका को बंद करते हुए दाएं नासिका रंध्र से स्वास धीरे-धीरे एक ही लय में निकाल दें। 


सूर्यभेदी प्राणायाम की यह एक आवर्ती पूरी हुई।


ध्यान रहे स्वास में किसी प्रकार का झटका या कम या धीरे नहीं होनी चाहिए। एक ही लय में श्वास लें और एक ही लय में धीरे-धीरे श्वास छोड़ें।


प्रारंभ में 8 से 10 राउंड सूर्यभेदी प्राणायाम का अभ्यास करें। इनको धीरे-धीरे बढ़ाकर 25 से  30 भी कर सकते है।


प्रारंभ में आपको इतना ही करना है। इसमें दक्षता प्राप्त करने के बाद स्वास के साथ अनुपात को जोड़ना है।


 सर्वप्रथम 1:1:1 का अनुपात रखना है। अर्थात जितनी देर में आप श्वास लें उतनी देर तक रोक कर रखे अर्थात कुंभक लगाएं और उतने ही समय में श्वास को निकाले।


 उसके बाद अनुपात 1:2:2 का...


अंत में प्राणायाम पर दक्षता प्राप्त होने के बाद 1:4:2 का अनुपात रखे अर्थात जितने समय में आपने स्वास लिया उसके चार गुना स्वास रोके और उसके दुगने समय मे स्वास को निकाले...


लाभ


सर्दियों के समय में इसका का अभ्यास करने से यह हमें सर्दी से बचाता है। यह शरीर में गर्मी उत्पन्न करता है।


यह वात दोषों का निवारण करता है।


मंदबुद्धि, जड़ और अंतर्मुखी लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण प्रणायाम है।


ध्यान से पहले सूर्यभेदी प्राणायाम का अभ्यास बहुत ही फायदेमंद होता है।


यह पिंगला अर्थात दाएं स्वर को क्रियाशील बनाकर प्राण शक्ति को जागृत करता है।


निम्न रक्तचाप, नपुसंकता, पेट में कीड़ों के लिए यह बहुत ही शक्तिशाली प्राणायाम है। 


सूर्यभेदी प्राणायाम पिंगला नाड़ी का भेदन करते हुए बुढ़ापे और मृत्यु पर विजय प्राप्त कर कुंडलिनी सक्ति का जागृत करता है।



सावधानियां


सूर्यभेदी और चंद्रभेदी प्राणायाम का अभ्यास एक ही दिन में नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह दोनों विपरीत प्राणायाम है। हमारे शरीर पर विपरीत प्रभाव डाल सकते है।


20 मिनट से अधिक सूर्यभेदी प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए अन्यथा यह श्वसन चक्र में असंतुलन पैदा कर सकता है।


हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मिर्गी… के रोगियों को यह अभ्यास नहीं करना चाहिए।


भोजन के तुरंत बाद सूर्यभेदी प्राणायाम का अभ्यास कभी ना करें, क्योंकि यह पाचन क्रिया से जुड़े ऊर्जा प्रवाह को रोक कर, उसमें गड़बड़ी उत्पन्न कर सकता है।


यह एक शक्तिशाली प्राणायाम है। इसका अभ्यास संपूर्ण जानकारी लेने के बाद या कुशल योग शिक्षक के सानिध्य में ही करना चाहिए।


विशेष


प्राणायाम करते समय आपका स्वास धीमा, गहरा और सहज होना चाहिए। इसमें किसी भी प्रकार का झटका व्यवधान या जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।


स्वास पूरा लेना चाहिए और पूरा छोड़ना चाहिए। कुंभक भी उत्तेजना होने तक करना चाहिए अर्थात स्वास को रोकना।


प्राणायाम का संपूर्ण लाभ लेने के लिए 1:4:2 के अनुपात में जालंधर बंध, मूलबंध और उड्डियान तीनो बंध के साथ करना चाहिए। 


स्रोत:- घेरंड संहिता, महायोगी घेरंड द्वारा लिखा गया हठयोग पर सुप्रसिद्ध ग्रंथ।


#kailashbabuyoga


धन्यवाद


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