चंद्ररभेदी प्राणायाम की विधि
चन्द्र भेदी प्राणायाम करने के लिए किसी भी ध्यान के आसन में स्थिरता पूर्वक बैठ जाएं और अपनी श्वास सामान्य होने के बाद, तीन बार लंबी गहरी श्वास के साथ ॐ चांटिंग करें। फिर शरीर को शिथिल करे व सम्पूर्ण शरीर को देखने की कोशिश करे। प्रत्येक प्राणायाम करने से पहले ऐसा करे...
उसके बाद, प्राणायाम मुद्रा बनाएं और अंगूठे से "दाएं स्वर" को बंद करें और बाय स्वर से से पूरक करे अर्थात धीरे-धीरे श्वास लें, उसके बाद कुम्भक लगाए अर्थात श्वास को रोक कर रखे यथासंभव जितनी देर सांस रोक सके रोके, उसके बाद लास्ट वाली दोनों उंगलियों से बाय स्वर को बन्द करे और दाएं वाले श्वर से रेचन करे अर्थात धीरे-धीरे संपूर्ण श्वास निकाल दे। यह एक आवर्ती हुई। 10 से 20 आवर्ती का अभ्यास करें, धीरे-धीरे आवर्तीयो की संख्या बढ़ाए।
अभ्यास में पारंगत होने के बाद रेचक, पूरक और कुंभक में 1:4:2 का अनुपात लाने की कोशिश करें, और बधों के साथ चन्द्रभेदी प्राणायाम करे।
अर्थात जितनी देर में आप श्वास लें पूरक करें उसका 4 गुना श्वास को रोककर रखें कुंभक करे और जितनी देर में आपने श्वास लिया था, उसके दुगने समय में श्वास निकाले अर्थात रेचन करें।
पूरक करने के बाद कुम्भक के समय पहले जालंधर बंध लगाएं उसके बाद मूलबंध, जब रेचन करना हो तो पहले मूल बंद खोलें फिर जालंधर बंद।
चंद्रभेदी प्राणायाम का अभ्यास अधिक देर तक नहीं करना चाहिए। प्रारंभ में 10-15 अवर्तियां ही काफी है। उसके बाद धीरे-धीरे अवर्तियों की संख्या बढ़ानी चाहिए। 10-15 मिनट से अधिक चंद्रभेदी और सूर्यभेदी प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
उच्च रक्तचाप, हृदय रोगीयो को कुम्भक और बंध का अभ्यास नही करना चाइये अर्थात स्वास नहीं रोकना चाइये। वे लोग बिना कुम्भक व बंध के प्राणायाम का अभ्यास करें।
**चंद्रभेदी प्राणायाम करने के लाभ**
- चंद्रभेदी प्राणायाम हमारे शरीर में चंद्रमा की तरह शीतलता प्रदान करता है।
- चन्द्रभेदी प्राणायाम से मानसिक शांति मिलती है।
- चंद्र नाड़ी को सक्रिय करता है।
- यह क्रोध, तनाव, चिड़चिड़ापन और अनिद्रा की समस्यायो को दूर करता है।
- स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
- यह हृदय रोग को सही करने में अहम भूमिका निभाता है।
- इससे चर्म रोगों का नाश होता है।
- पाचन शक्ति क्रियाशील और सुचारू होती है।
- उच्च रक्तचाप के लिए बहुत अच्छा प्राणायाम है.. कुछ ही दिनों के अभ्यास से उच्च रक्तचाप सामान्य हो जाता है।
**चंद्रभेदी प्राणायाम में सावधानियां**
- चंद्रभेदी प्राणायाम केवल गर्मियों में ही करना चाहिए, सर्दी में करने से हानि हो सकती है आपके शरीर में शीतलता व ठंड का प्रकोप हो सकता है।
- जिन लोगों को निम्न रक्तचाप, चिंता, अवसाद, मिर्गी…. इत्यादि जैसी समस्याएं हो उन्हें चंद्रभेदी प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- दमा, श्वास रोगी, कफ के रोगी, निम्न रक्तचाप और ठंड में चंद्रभेदी प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- सूर्यभेदी और चंद्रभेदी प्राणायाम दोनो का अभ्यास एक ही दिन में कभी भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह एक दूसरे के विपरीत प्राणायाम है।
विशेष परिस्थितियों में इस प्राणायाम का अभ्यास सर्दियों में भी कराया जाता है। इसके लिए योग्य योग गुरु का परामर्श आवश्यक है।
विशेष
- अगर आप किसी गर्म प्रदेश में घूमने जा रहे हैं, तो आपको कुछ दिन ब्रह्मचर्य का पालन कर चंद्रभेदी प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। ऐसा करने से आपको गरम प्रदेश में होने वाली समस्या से निजात मिल जाएगी और आपको गर्मी का एहसास बिल्कुल भी नहीं होगा...
- वहीं दूसरी तरफ, अगर आप ठंडे प्रदेश या ग्लेशियर की तरफ घूमने जा रहे है। तो आपको कुछ दिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए सूर्यभेदी प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।
- चंद्रभेदी और सूर्यभेदी प्राणायाम बहुत शक्तिशाली प्राणायाम है। यह दोनों एक दूसरे के विपरीत कार्य करते है। चंद्रभेदी जिस तरह से किया जाता है, सूर्यभेदी उसके विपरीत किया जाता है।
- चंद्रभेदी और सूर्यभेदी की लाभ व सावधानियां भी एक दूसरे के विपरीत है। इनका प्रभाव हमारे शरीर पर बहुत जल्दी देखने को मिलता है। इसलिए इन प्राणायामो का अभ्यास पूर्ण ज्ञान लेने के बाद ही प्रारंभ करें अन्यथा आपको हानि हो सकती है।
कैलाश बाबू
धन्यवाद
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