कैलाश बाबू योग

यह ब्लॉग योग की सटीक जानकारी देने के लिए है। योगाभ्यास करने के लिए किसी योग्य योग गुरु का परामर्श आवश्यक है।

रविवार, अप्रैल 25, 2021

श्वसन विधियाँ, Pranayama techniques for beginners , How to do pranayama



प्राणायाम का प्रारंभ कैसे करे

How to start pranayama


योग का नाम लेते ही हमारे मन मस्तिष्क में प्राणायाम का नाम सबसे पहले आता है।  प्राणायाम सीधा हमारे प्राण पर कार्य करता है। प्राण वायु का विस्तार करता है। जिन सूक्ष्म अंगों और सूक्ष्म कोशिकाओं तक प्राणवायु नहीं पहुंच पाती, वहां तक प्राणवायु पहुंचाने का कार्य प्राणायाम करता है। 


शहर और प्रदूषण के वातावरण में रहते-रहते हमारे फेफड़ों के छिद्र बंद होते चले जाते है और हमारा स्वास धीमा वे कमजोर होता चला जाता है। इसके समाधान के लिए हम प्राणायाम करना प्रारंभ कर देते है। 


परंतु दुख इस बात का है कि, अधिकतर लोग प्राणायाम गलत करते है। प्राणायाम योग का बहुत ही विस्तृत और कठिन अभ्यास है। इसको धीरे-धीरे और सहजता के साथ ही करना चाहिए। जिस तरह से जंगल के हिंसक जीवों को धीरे-धीरे वस में किया जाता है, वैसे ही प्राण को भी धीरे-धीरे वस में किया जाता है। अगर आप जल्दबाजी या कुछ दिनों में प्राणायाम से लाभ प्राप्त करने की कोशिश करेंगे तो, यह असंभव है।


  हमारा स्वास  हमारी नाभि तक जाना चाहिए, इसके लिए हमें हमेशा अपनी कमर को सीधा करके बैठना चाहिए। कमर को झुकाकर बैठना हमारे स्वास कमजोर होने का मुख्य कारण है। 


प्राणायाम का अभ्यास प्रारंभ करने से पहले आसान-आसान कुछ योगिक श्वसन का अभ्यास अवश्य करना चाहिए।  जिससे स्वास आपके नियंत्रण में आ सके। प्रारंभ में ही कपालभाति, नाड़ी शोधन, अनुलोम विलोम... या अन्य प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए। प्राणायाम कि ये क्रियाये बहुत ही विस्तृत और उच्च लेवल की है। इनके अभ्यास में और इनको सीखने में समय लगता है। 


 प्राणायाम प्रारंभ करने से पहले कुछ श्वशन विधियों का अभ्यास अवश्य करना चाहिए। जिसमें मुख्यत: स्वाभाविक श्वशन, उदर श्वशन, गर्दनी श्वशन और यौगिक श्वशन आते है। यह बहुत ही आसान और फायदेमंद श्वशन विधियां है। अगर आप इन विधियों का निरंतर अभ्यास करते है तो, आपको प्राणायाम का पूरा लाभ मिलेगा और आपके शरीर के छोटे-मोटे रोग स्वत: ही समाप्त हो जाएंगे।


 इन क्रियाओं में दक्षता प्राप्त करने के बाद कपालभाति, नाड़ी शोधन... और अन्य प्राणायामो का अभ्यास करना चाहिए अन्यथा आप को  लाभ तो कुछ नहीं होगा बल्कि हानि हो सकती है। क्योंकि प्राणायाम का अभ्यास करने से पहले आपकी स्वास पर आपके प्राण पर आपका नियंत्रण होना चाहिए। इसके लिए इन छोटी-छोटी किर्याओ का अभ्यास करना चाहिए। 


श्वसन विधि-1 स्वाभाविक श्वशन

Respiratory Method-1 Natural Breathing


 यह श्वशन विधि श्वास- प्रश्वास की गति को धीमा करने और उसे अधिक विश्रामदायक व लय युक्त बनाने के लिए है। जिससे प्राणायाम करने में सहजता महसूस हो…


इन क्रियाओं का अभ्यास कोई भी कभी भी किसी भी समय कर सकता है। अगर आप खाली पेट करेंगे तो आपको अधिक लाभ होगा।


विधि

ध्यान के किसी आरामदायक आसन में बैठ जाएं या फिर आप शवासन में भी इसका अभ्यास कर सकते है। ध्यान रहे आपकी कमर बिल्कुल सीधी होनी चाहिए।


अब अपने पूरे शरीर को शिथिल करें और मन मस्तिष्क को शांत करने का प्रयास करें। अपनी चलती हुई स्वास पर  संपूर्ण ध्यान लगा दे…


 अपनी चलती हुई स्वास को लयबद्ध करें और उसके प्रति पूर्ण रूप से सजग हो जाएं।


 नासिका के अंतिम शिरो से स्वास-प्रश्वास को आते और जाते महसूस करें। एक दृष्टा बनकर स्वास को देखते रहे उस पर नियंत्रण करने का प्रयास बिल्कुल भी ना करें। स्वास को स्वत: ही चलने दे।


 महसूस करें जब श्वास अंदर जा रहा है तो वह ठंडा और शीतल है और जब वह बाहर आ रहा है तो गर्म है। 


एक स्थिर दृष्टा के भाव से इसका अवलोकन करते रहे…


 अब धीरे से अपनी सजगता कंठ पर ले आए और महसूस करें की आपका स्वास कंठ से होकर आ-जा रहा है। 


 कंठ के संकुचन को महसूस करें। कंठ से जाते और आते हुए स्वास को ध्यान से देखें और उसके प्रति सजग हो जाए। कंठ से आते और जाते स्वास के प्रति सजग हो जाये और उसके प्रवाह में खो जाएं… 


अब अपनी सजगता को वक्ष-प्रदेश पर लेकर आएं। श्वास नली की वाहिकाओं में प्रवाहित स्वास के प्रति सजग हो जाएं और उस पर अपना संपूर्ण ध्यान लगा दे।


  अब अपना ध्यान फेफड़ो पर लेकर आए उनके सिकुड़ने और फूलने का अनुभव करें। उसके बाद अपना ध्यान वक्ष पिंजर अर्थात पसलियों पर लेकर जाएं और उस क्षेत्र के विस्तार व संकुचन को अनुभव करें। व मानसिक रूप से देखने का प्रयास करें।


 उसके बाद उदर प्रदेश अर्थात पेट पर अपने ध्यान को केंद्रित करें। महसूस करें स्वास लेते हुए पेट फूल रहा है और श्वास छोड़ते हुए पेट पिचक रहा है।


 अंत में नासिका छिद्रों से लेकर उदर तक स्वास को महसूस करें और सभी अंगों को एक साथ देखने का प्रयास करें।


 स्वास लेने के साथ सभी अंग फुलते है और स्वास छोड़ने के साथ सभी अंग सिकुड़ते है। 


अंत में अपनी सजगता व ध्यान भौतिक शरीर पर लाएं और पूरे शरीर को एक इकाई के रूप में देखें। 


सहजता के साथ अपने दोनों हाथों को रगडे व हथेलियों के खाली हिस्से से आंखों को सेकते हुए नीचे देखें और आराम से दोनों आंखें खोल दें। 


यह अभ्यास कम से कम 10 से 15 मिनट करे। इस श्वसन विधि का अभ्यास आप कभी भी कर सकते है। इससे आपका स्वास लंबा होगा स्वास के प्रति आप की सजगता बढ़ेगी और आपका स्वास लायबध्द होगा….


श्वसन विधि-2 उदर श्वशन 

Respiratory method-2 abdominal breathing


 उदर श्वशन डायफ्राम के कार्य को बड़ा कर और वक्ष पिंजर के कार्य को घटा कर किया जाता  है। डायफ्राम मांसपेशियों की एक चादर की तरह है जो, उदर को फेफड़ो से अलग करता है।


 स्वास लेते समय डायाफ्राम नीचे की तरफ जाता है और पेट की मांसपेशियों को नीचे से बाहर की ओर ढकेलता है। श्वास छोड़ते समय डायफ़्राम ऊपर की तरफ आता है और उदर की मांसपेशियया अंदर की ओर…


उदर श्वशन में डायफ़्राम की गति, फेफड़ों के निचले हिस्से के उपयोग को दर्शाता है । इससे लिवर, आंते, व डायफ़्राम के निचले अंगों की मालिश होती है। साथ ही यह हृदय के कार्य और धमनियों को सही मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति करता है। वह उस को स्वस्थ रखने में अहम भूमिका निभाता है। शरीर में ऑक्सीकरण की आपूर्ति को सही रखता है।  मानसिक रोगों का निदान करता है।


 तनाव, गलत बैठने की आदत से होने वाले रोग और छोटी-मोटी समस्याओ का उदर श्वशन से निदान कीया जा सकता है।


 प्रशिक्षण और ज्ञान के अभाव में हम इन प्राचीन विधाओं को भूलते जा रहे है और रोगों की गिरफ्त में फंसेते चले जा रहे है। हमें फिर से एक बार इन श्वशन विधाओं का अभ्यास करना चाहिए। 


विधि


 किसी भी ध्यान के आसन में बैठ जाएं या शवासन में भी आप उदर श्वशन का अभ्यास कर सकते है।  अपने शरीर को शिथिल करे, स्वास के प्रति सजग हो जाएं। अपना संपूर्ण ध्यान स्वास- प्रश्वास पर लगा दे। अपनी स्वास को सहज ही चलने दें। उससे छेड़खानी ना करें बस दृष्टा बन कर उसे देखते रहे…


 कुछ समय अपनी स्वाभाविक श्वशन को देखने का प्रयास करें।


फिर बायां हाथ वक्ष के ऊपर और दाया हाथ नाभि के ऊपर रखें। श्वास लेने के साथ दाया हाथ पेट के साथ ऊपर आएगा और श्वास छोड़ते समय नीचे। आपका बाया हाथ  हिलना नहीं चाहिए। आप श्वशन सीधा पेट से करें। ध्यान रहे जबरदस्ती पेट को ऊपर और नीचे नहीं करना है। स्वाभाविक रूप से जितना होता है, उसको एक दृष्टा बनकर देखते रहना है।


ध्यान रहे सम्पूर्ण स्वास ले और सम्पूर्ण स्वास छोड़े आधे-अधूरे स्वास के साथ अभ्यास से कोई फायदा नही होगा।


 अपने वक्ष को फैलाने या ऊपर नीचे करने का प्रयास ना करें। कंधों को ना हिलाये-डुलाए स्वास सीधा पेट से लें। पेट को फूलने और सुकड़ने दें….


  बल का प्रयोग बिल्कुल भी ना करें स्वास धीमा और गहरा व नियंत्रण में होना चाहिए। पूरक(सम्पूर्ण स्वास लेना)  करते समय आपकी नाभि उच्चतम शिखर पर जाएगी और डायग्राम नीचे, वही रेचक(सम्पूर्ण स्वास छोड़ना) करते समय आपकी नाभि रीड की हड्डी की तरफ जाएगी और डायग्राम ऊपर की तरफ... यही प्रक्रिया निरंतर करते रहें। अभ्यास कम से कम 10 से 15 मिनट तक करें…


श्वसन विधि-03 वक्ष श्वसन

Respiratory method-03 thoracic breathing


 

वक्ष श्वसन वक्ष पिंजर अर्थात पसलियों को फैलाकर कर और फेफड़ों के मध्य भाग का उपयोग कर किया जाता है। यह बहुत ही उपयोगी विधि है।


इसमें उदर(पेट) श्वसन विधि से अधिक ऊर्जा की खपत होती है। इसका अभ्यास अधिकतर शारीरिक व्यायाम और अधिक मेहनत करने वाले व्यक्तियों के लिए अधिक फायदेमंद है। यह विधि शरीर को ऑक्सीजन की अधिक मात्रा प्रदान करती है। 


विधि


ध्यान के किसी एक आसन में कमर सीधी कर बैठ जाएं या शवासन में लेट जाएं। अपने संपूर्ण शरीर के प्रति सजग हो जाएं और उसे एक इकाई के रूप में देखें। फिर धीरे से अपना ध्यान अपनी स्वास के ऊपर लाये और अपनी आती-जाती श्वास को एकाग्र के साथ देखें और उसमें खो जाए। 


 अब धीरे से अपना ध्यान वक्ष पिंजर( Thoracic cage) पर लेकर आए और महसूस करें की स्वास लेते समय पसलियां बाहर की तरफ फेल रही है और फेफड़ो का विस्तार हो रहा है। श्वास छोड़ते हुए पसलियां अंदर की तरफ जा रही है और फेफड़े सिकुड़ रहे है। 


लंबा गहरा श्वास लेते हुए निरंतर यह अनुभव करे। स्वास लेते और छोड़ते समय डायफ़्राम का इस्तेमाल बिल्कुल भी ना करें। संपूर्ण स्वास वक्ष अर्थात फेफड़ो से ले… और फेफड़ो से ही छोड़े… महसूस करे कि स्वास लेते समय फेफड़े फेल रहे है और स्वास छोड़ते समय सिकुड़ रहे है।


अपने वक्ष को अधिक से अधिक फैलाएं और अधिक से अधिक सिकोड़े ध्यान रहे संपूर्ण स्वास की क्रिया वक्ष के माध्यम से होनी चाहिए डायग्राम या पेट का उपयोग बिल्कुल भी ना करें।


 संपूर्ण सजगता के साथ धीरे-धीरे वक्ष श्वसन का अभ्यास करते रहे। जैसे ही थकान महसूस हो विश्राम करें। क्योंकि यह थोड़ा कठिन अभ्यास है। बीच-बीच में पसलियों में तनाव होते ही विश्राम करते रहे । अभ्यास 10 से 15 मिनट निरंतर करे…


श्वसन विधि-04 गर्दनी श्वसन

Respiratory Method-04 Neck Respiration


 गर्दनी श्वसन वक्ष श्वसन का अंतिम चरण है। वक्ष श्वसन में पूरक के अंत में गर्दन श्वसन का अभ्यास किया जाता है।


 वक्ष श्वसन के अंदर फेफड़े व पसलियों को पूर्ण रूप से फुलाया और सुकोडा जाता है। वही गर्दन श्वसन में जब आपके फेफड़े पूर्ण रूप से फूल जाए उसके बाद उसमें थोड़ी और ऑक्सीजन भरनी होती है। जिससे आपकी गर्दन, हसली की हड्डी(कोलर बोन) पर उभार आए। उसे महसूस करें, बस यही गर्दन श्वसन है।


  इससे फेफड़ों का संपूर्ण विस्तार होता है और फेफड़ों के ऊपरी हिस्से का उपयोग गर्दन श्वसन में होता है। कठिन परिश्रम, दमा और वायु रोगों में यह बहुत ही फायदेमंद श्वसन विधि है।


विधि


शवासन में लेट जाएं और संपूर्ण शरीर को विश्राम की स्थिति में ले आए। अपनी सांसो पर कुछ समय ध्यान दें उन्हें धीमा और उनके प्रति सजग होने की कोशिश करें।


कुछ  समय तक वक्ष श्वसन का अभ्यास करें। अपनी पसलियों को पूर्ण रूप से फैलाते हुए श्वास लें... जब पसलियां पूर्ण रूप से फैल जाएं उसके बाद भी थोड़ा स्वास और लें... जब तक गर्दन के नीचे व ऊपरी हिस्से में फैलाव महसूस ना हो। इससे आपकी कंधे, हसली की हड्डी अर्थात कॉलर बोन थोड़ा ऊपर की ओर उठेगी इसके लिए आपको थोड़ा प्रयत्न करना होगा।


 उसके बाद धीरे से स्वास निकाले... अर्थात रेचन करें। पहले गर्दन और छाती के ऊपर हिस्से की हवा को निकाले फिर पसलियों की हवा को। उसके बाद शरीर को शिथिल कर प्रारंभिक स्थिति में आ जाएं। इस प्रकार कई मिनटों तक अभ्यास जारी रखें थकने पर विश्राम करें….


श्वसन विधि-05 योगिक श्वसन

Respiratory Method-05 Yogic Respiration


 योगिक श्वसन में पीछे बताए गयी तीनों क्रियाओं का अभयास सम्मिलित होता है।  योगिक श्वसन विधि से हमारे स्वास पर नियंत्रण, गलत श्वसन विधि में सुधार और संपूर्ण शरीर में ऑक्सीजन आपूर्ति में वृद्धि होती है।


योगिक श्वसन विधि का अभ्यास दिन में कभी भी किया जा सकता है। अगर आप क्रोध या तनाव की स्थिति में इसका अभ्यास करते है। तो आपको तुरंत लाभ होगा। 


 योगिक श्वसन विधि का अभ्यास लंबे समय तक नहीं करना चाहिए। इसमें दक्षता प्राप्त होते ही प्राणायाम का अभ्यास प्रारंभ कर देना चाहिए। योगिक श्वसन का अभ्यास हम इसलिए करते है कि, स्वास पर हमारा नियंत्रण हो सके... जिससे हम प्राणायाम कर सकें।


योगिक श्वसन विधि 


ध्यान के किसी एक आसन में बैठ जाएं या शवासन में लेट जाएं। अपने संपूर्ण शरीर को शिथिल करें व स्वास के प्रति सजग हो जाएं।


 धीमा और गहरा श्वसन करें। इतना धीमा कि स्वयं को भी सांस लेने का एहसास व आवाज ना हो।


 सर्वप्रथम अपने उदर को पूरी तरह वायु से भरे और उसे फैलने दें... उसके बाद अनुभव करें वायु फेफड़ों के निचले हिस्से में प्रवेश कर रही है। उदर का फैलाव पूरा होते ही वक्ष को अर्थात अपने फेफड़ों व छाती को हवा से फैलाने का प्रयास करें। जब पसलियां, फेफड़े पूर्ण रूप से हवा से भर जाए तब, गर्दन के निचले व ऊपरी हिस्से को फैलाने का प्रयास करे। कॉलर बोन और कंधे भी थोड़े ऊपर की ओर उठने चाहिए। गर्दन की मांसपेशियों में थोड़ा तनाव महसूस होगा।


शरीर के बाकी हिस्से को शिथिल करे। अनुभव करें कि फेफड़ों के ऊपरी भाग में ऑक्सीजन भर रही है। यह स्वास का एक चक्र पूरा हुआ।


यह प्रक्रिया इतनी धीमी और लयबद्ध होनी चाहिए कि पूरा चरण एक ही महसूस हो इसमें कहीं रुकावट, झटका, अनावश्यक तनाव... नहीं आना चाहिए।


अब धीरे-धीरे श्वास छोड़ना शुरू करें। सबसे पहले गर्दन वाले हिस्से को, फिर वक्ष, और उसके बाद वक्ष के नीचे वाले हिस्से को शिथिल व संकुचित करें। उसके बाद मध्य भाग को, पेट वाले हिस्से को रीड की तरफ खींचने का प्रयास करें और फेफड़ों को संपूर्ण खाली कर दें।


 यह प्रक्रिया लयबद्ध और एक समान होनी चाहिए। किसी तरीके का झटका या श्वास कम-ज्यादा नहीं होनी चाहिए। संपूर्ण स्वास निकलने के बाद थोड़ी देर सांस रोके अर्थात बाहरी कुंभक करें।


 यह योगिक श्वसन का एक चक्र पूरा हुआ। 4-6 चक्रों का अभ्यास करें और इसे धीरे-धीरे बढ़ाकर 10 से 15 मिनट तक कर सकते है।


कैलाश बाबू योग 


धन्यवाद



1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही अच्छी सूचना जिससे हम अपने शरीर को लंबे समय तक स्वस्थ रखते हुए अपने सांसो पर ध्यान एकत्रित कर सकते है।

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