कैलाश बाबू योग

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बुधवार, जून 17, 2020

सिद्ध आसन विधि, लाभ और सावधानियां Siddh Aasan method, benefits and precautions

  हठ योग कहता है कि, अगर सिद्धासन सिद्ध हो जाए तो बाकी आसनों का क्या प्रयोजन…?

सिद्ध आसन विधि, लाभ और सावधानियां Siddh Aasan method, benefits and precautions

  हठयोग में 8400000 आसनों का जिक्र है। जिसमें से 84 आसन मुख्य हैं। उसमें से भी 4 आसन सबसे मुख्य हैं, सिद्धासन, पद्मासन, भद्रासन और सिंह आसन और इन चारों में से भी दो श्रेष्ठ आसन है, पद्मासन और सिद्धासन इसमें से भी सिद्धासन सर्वश्रेष्ठ आसन है।

सिद्धासन करने के लिए बाएं या दाएं पांव की एड़ी को सिवनी नाड़ी (लिंग और गुदा के बीच में चार अंगूल का गेप है उसको सिवनी नाड़ी बोलते हैं) पर लगाना चाहिए। दूसरा पेर लिंग के ऊपर रखकर दोनों पैरो को जांघो के बीच में फसा देना चाहिए। कमर सीधी, मन शांत और विचारों का आगमन सुन्य करने का अभ्यास करना चाहिए।


सिद्धासन सर्वश्रेष्ठ आसन क्यों है…?

"स्वामी स्वात्माराम जी के अनुसार, "जिस तरह केवल कुम्भक के समान कोई कुम्भक नहीं, खेचरी मुद्रा के समान कोई मुद्रा नहीं, नाद के समान कोई लय नहीं; उसी प्रकार सिद्धासन के समान कोई दूसरा आसन नहीं है।"

गुदा मार्ग के चार अंगुल ऊपर कंद होता है। जहां से संपूर्ण शरीर की ऊर्जा संचालित होता है और वहीं से मूलाधार चक्र और कुंडलिनी शक्ति जागृत होने की अवस्था उत्पन्न होती है। सिवनी नाडियो पर दबाव पड़ने से कंद मैं कंपन उत्पन्न होता है, और उससे कुंडलिनी जागृत होकर मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र की तरफ गति करने लगती है।

सिवनी नाड़ियों पर दबाव पड़ने से ब्रह्मचर्य में मदद मिलती है। क्योंकि सिवनी नाडियो से ही वीर्य प्रवाहित होता है।

सिद्धासन में बैठने से त्रिबंध(उड्डियान बंध जालंधर बंध और मूलबंध) अनायास ही लग जाते हैं। जिनके बिना उर्जा का उर्द्धगामी होना असंभव है।

इस आसन का नाम सिद्धासन इसीलिए रखा गया है क्योंकि इससे बहुत जल्दी ही सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं।

सिद्धासन किसको नहीं करना चाहिए…?

साधारण लोगों को सिद्ध आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

गृहस्थी लोगों को सिद्ध आसन का अभ्यास अधिक देर तक नहीं करना चाहिए या बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।

सिद्धासन में उन्हीं लोगों को बैठना चाहिए जो योग में आगे बढ़ना चाहते हैं। जो लोग शारीरिक लाभ प्राप्त करने के लिए योग अभ्यास करना चाहते हैं। ऐसे लोगो को सिद्धआसन में बिल्कुल भी नहीं बैठना चाइए।

ऐसा इसलिए कहा गया है। क्योंकि सिद्धासन में अधिक देर बैठने से मन अंतर्मुखी होकर अध्यात्म की ओर अग्रसर हो जाता है और अखंड ब्रह्मचर्य की प्राप्ति होती है।

कोई भी आसन शारीरिक स्थिति मात्र नहीं है, इसमें हमारी शारीरिक स्थिरता के साथ मन, वाणी और अंतरात्मा की स्थिरता भी जरूरी है। अगर आसन के साथ मन, वाणी और अंतरात्मा की स्थिरता नहीं है, तो वह मात्र साधारण व्यायाम बनकर ही रह जाएगा।

साधारण लोग या गृहस्थी सिद्ध आसन की जगह पद्मासन का अभ्यास करेंगे तो उनके लिए यह उत्तम है।

कैलाश बाबू योग

धन्यवाद

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