कैलाश बाबू योग

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सोमवार, सितंबर 30, 2019

उपवास

उपवास
   उपवास रोग मुक्ति का एक अच्छा उपाय हैक्योंकि उपवास के समय शरीर की सारी शक्ति रोग को दूर करने में लग जाती है।जिससे शरीर निरोगी और शक्तिशाली बनता है। भोजन बंद कर देना अथवा फल, सब्जी, जल पर आश्रित रहनाा ही उपवास नहीं है उपवास का अर्थ तो शरीर के संपूर्ण विकास से है। 
   उपवास का शाब्दिक अर्थ है उप+वास "उप" का अर्थ है समीप "वास" का अर्थ है निवास करना जिसका अर्थ है आत्मा स्थित अर्थात स्वयं में स्थित होना। उपवास शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक स्वच्छताा के लिए महत्वपूर्ण उपाय है। 
उपवास का अर्थ 
   उपवास का अर्थ है अपने पाचन संस्थाान को पूर्ण रूप से विश्राम देना और यह विश्राम तभी मिल सकता है जब हम भोजन का कुछ समय के लिए पूर्ण त्याग कर दें।
   उपवास की परिभाषा इस प्रकार है भोजन का पूर्ण त्याग करके केवल जल पर ही आश्रित रहना उपवास कहलाता है। 
   हम अपने पाचन संस्थान को पूर्ण विश्राम कभी नहीं देते इसका कारण यह है कि हम हमेशा कुछ न कुछ खाते रहते हैं बहुत अधिक ना सही दिन में कम से कम 2 से 3 बार तो खाते ही है। 
   हमारे देश में उपवास की परंपरा बहुत प्राचीन है हिंदू धर्म में व्रत करना,इस्लाम धर्म में रोजे रखना। इसके उदाहरण है यह संभव है कि कुछ लोग इसके गुणों के बारे में नहीं जानते परंतु हमारे ऋषि-मुनियों ने उपवास को धर्म से जोड़कर आस्था से जोड़कर जो कार्य किया है ।उसकी वजह से आज कई लोग  जाने या अनजाने मैं ही सही परंतु  उनको लाभ अवश्य मिलता है।
   कुछ लोग उपवास के बारे में नहीं जानते हैं वह इसे भूखा मरना समझते हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं रोग होने का कारण शरीर में स्थित विश होता है। और उपवास काल में सबसे पहले इन्हीं विशो का नाश होता है। उसके बाद हमारे शरीर में संचित पदार्थों से शरीर अपना काम चलाता है। जो शरीर में विशेष परिस्थितियों का सामना करने के लिए जमा रहते हैं जैसे वसा। 
  इन विषयों के समाप्त होने के बाद यदि उपवास जारी रखा जाए तो शरीर अपने पोषण के लिए उन पदार्थों का उपयोग करने लगेगा जो शरीर के लिए बहुत आवश्यक है। और यह प्रक्रिया निरंतर जारी रही तो शरीर धीरे-धीरे दुर्बल होकर कमजोर होने लगेगा और शरीर का पतन शुरू हो जाएगा। 
उपवास और मृत्यु में अंतर 
   डॉक्टर कैरिंगटन के अनुसार उपवास भोजन त्यागने से शुरू होकर वास्तविक भूख के लगने पर समाप्त हो जाता है। परन्तु  भुखमरी वास्तविक भूख के लगने से प्रारंभ होकर मृत्यु पर जाकर ही समाप्त होती है। 
   उपवास केवल हमारे शरीर को ही नहीं बल्कि हमारे मन और आत्मा की भी शुद्धि करता है। क्योंकि उपवास के समय में अपूर्ण शांति का अनुभव होता है और मन के शांत होने पर वह परमात्मा में लीन हो जाता है इसीलिए कहा जाता है कि प्राकृतिक चिकित्सा हमारे शरीर, मन और आत्मा तीनों का उपचार एक साथ करती है। 
   इतना कुछ समझने के बाद हमें उपवास का महत्व स्पष्ट हो जाता है और इसी महत्व को समझकर हमें उपवास अपने जीवन में अपनाना चाहिए। और अपने स्वास्थ्य की रक्षा करनी चाहिए इसी को ध्यान में रखते हुए उपवास के प्रकार के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। 
उपवास के प्रकार 
   उपवास रोग रोगी और परिस्थितियों के अनुसार कई प्रकार के होते हैं। उसमें से हम अपनी सुविधा अनुसार जो उचित लगे उसे अपना कर उससे लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
प्रात कालीन उपवास
   यह काफी सरल उपवास है। प्रात कालीन उपवास में हम सुबह का नाश्ता छोड़ देतेे हैं। लेकिन उपवास के कुछ नियम भी है।  बिना नियम के किया गया उपवास हानि पहुंचाता है। अक्सर लोग क्या करते हैं। रात को लेट सोतेेे हैं और सुबह लेट उठते हैं। उसके बाद वह सीधा दोपहर का खाना खातेे हैं। यह अनजानेेेे में किया गया बिना नियम का उपवास है जो स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है। 
   प्राप्त काल उपवास का लाभ तब लिया जा सकता है। जब आप सूर्य उदय से पहले उठकर अपने नित्य कर्म करें और उसके बाद सुबह का नाश्ता त्याग कर दोपहर को और रात्रि को दो ही बार भोजन करें बीच में कुछ ना खाएं तब यह प्राप्त कालीन उपवास कहलाएगा।
सायं कालीन उपवास
   इस उपवास में रात का भोजन बंद कर दियाा जात है। इस उपवास में केवल एक बार भोजन कियाा जाता। लेकिन आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में इसका उल्टा होता है। 
पूरा दिन खाना खाने का समय ही नहीं होता है अगर होता भी है तो उसको जल्दी जल्दी खत्म करने की कोशिश करते हैं। जो हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाता है और उसके बाद इस पूरे दिन की भरपाई हम रात को करते हैं गरिष्ठ और मसालेदार भोजन करके। जो हमारे शरीर को और भी ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। और यह हमारी कब्ज और अपच का कारण बनता है। और फिर आगे चलकर वे कई जटिल रोगों का कारण बनता है।
   सायं कालीन उपवास ऐसे लोगों को अधिक लाभ देता है जो पुराने तथा जटिल रोगों से पीड़ित हैं। इस उपवास का लाभ उठाने के लिए हमारा भोजन सुपाच्य और प्राकृतिक होना अनिवार्य है तभी इसका पूर्ण लाभ लिया जा सकता है। 
एक आहार उपवास 
  हम लोग 24 घंटे में लगभग तीन बार भोजन करते हैं और हर बार कई तरह के खाद पदार्थों को एक साथ मिलाकर खाते हैं जैसे रोटी, सब्जी, दाल, चावल, सलाद, अचार, दही, आइसक्रीम, मिठाई, आदि। इसमें से कुछ तो मेल खाते हैं और कुछ मेल ही नहीं खाते हैं। जो पदार्थ मेल खाते हैं वह हमारे शरीर को पोषण प्रदान करते हैं। और जो बेमेल पदार्थ है वो हमारे शरीर में विकार उत्पन्न करते हैं। इन्हीं बेमेल पदार्थों से बचने के लिए एक आहार उपवास करते  है। इस उपवास में केवल एक ही खाद्य पदार्थ का सेवन किया जाता है। जैसे यदि सुबह हमने रोटी खाई तो उसके सिवा और कुछ नहीं खाते फिर शाम को केवल तरकारी ही लेनी है। अगले दिन सुबह कोई फल लें तथा शाम को केवल दूध का ही सेवन करे।
   इस तरह हम देखते हैं कि एक समय में एक से अधिक खाद्य पदार्थ ग्रहण नहीं करते। जिस कारण बेमेल खाद्य पदार्थो के कुप्रभाव से बच जाते हैं। यह उपवास शरीर में छोटी बड़ी गड़बड़ियों के लिए किया जाता है जो हमारे स्वास्थ्य में असाधारण सुधार लाता है।
रस उपवास 
   इस उपवास की विशेषता यह है कि इसमें कोई भी ठोस पदार्थ नहीं लिया जाता है। जहां तक की फल भी नहीं इसमें केवल साग सब्जी व फल के जूस का हि सेवन किया जाता है। यह उपवास पेट को अधिक विश्राम देने की दृष्टि से किया जाता है इस उपवास में दूध का प्रयोग भी वर्जित है क्योंकि दूध एक ठोस पदार्थ में गिना जाता है। इस उपवास में बीच-बीच में एनिमा लेते रहने से शरीर की अच्छे से सफाई हो जाती है। यह उपवास हमारे शरीर से विषैले पदार्थों को निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
फल उपवास
   फल उपवास में केवल फलों का या साग सब्जियों का कुछ दिनों तक सेवन किया जाता है। बीच-बीच में पेट की सफाई के लिए एनिमा लेते रहना चाहिए। इस उपवास में किसी किसी लोगों को एक फल खाने से समस्या होती है तो वह लोग फलों को मिलाकर के खाएं या मौसम के फलों का ही सेवन करें जो पचने में सुपाच्य होते हैं।
दूध उपवास 
   दूध उपवास में आहार केवल दूध रहता है इसके अलावा कुछ नही। कुछ दिनों तक दिन में 4 से 5 बार केवल दूध का ही सेवन किया जाता है। इस उपवास में यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि जो दूध आप इस्तेमाल कर रहे हैं। वह स्वस्थ गाय का दूध ही होना चाहिए। क्योंकि अगर गाय स्वस्थ नहीं है। तो उसका दूध भी स्वास्थ्यवर्धक नहीं होगा उससे भी रोगी होने की संभावना रहती है। कभी-कभी गाय को औषधि भी दे दी जाती है जो उसके खून में मिलती है। और दूध के माध्यम से हम उसका अनजाने में सेवन कर लेते हैं। जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। यह उपवास हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होता है। 
मट्ठा उपवास
   मठो उपवास मैं आहार के रूप में केवल मट्ठे का प्रयोग किया जाता है। जिन लोगों की पाचन शक्ति बहुत ही निर्मल हो गई है। उन लोगों को दूध उपवास की बजाय मट्ठा उपवास कराया जाता है। क्योंकि दूध की अपेक्षा मट्ठा पचने में बहुत ही जल्दी पच जाता है। दूसरा मट्ठे में घी की मात्रा बहुत कम या नहीं होती है लेकिन मट्ठा कम खट्टा होना चाहिए। मट्ठा उपवास करने से पहले 2 से 3 दिन का पूर्ण उपवास कर लेना चाहिए मट्ठा उपवास 1 से 2 महीने तक चला सकते हैं। इस उपवास से शरीर में अत्यधिक उन्नति दिखाई देती है। इस उपवास को करते समय अगर कभी-कभी पेट भारी लगने लगे तो आप एनिमा भी ले सकते हैं।
पूर्ण उपवास 
   अपनी इच्छा के अनुसार शुद्ध ताजे पानी के सिवा कुछ अन्य पदार्थ ग्रहण ना करना पूर्णउपवास कहलाता है। इस उपवास को करने के लिए कुछ विशेष नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है। नहीं तो इसके कुछ दुष्परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं। जिनका वर्णन अगले ब्लॉग में किया जाएगा पूर्ण उपवास के ऊपर अलग से एक ब्लॉग लिखा जाएगा जो संपूर्ण जानकारी से भरा हुआ होगा। 
सप्ताहिक उपवास 
   सप्ताहिक उपवास में हम 1 सप्ताह में केवल 1 दिन पूर्व उपवास करते हैं तो इसे सप्ताहिक उपवास कहा जाता है। इसको करने से साधारण स्वास्थ्य सही रहता है। और हमारे शरीर की रोगी होने की संभावना कम हो जाती है। यह  उन लोगों के लिए बहुत लाभदायक है जो एक ही जगह पर बैठकर कार्य करते हैं। इस उपवास को करते समय दिन में एक या दो बार एनिमा ले लेना चाहिए जिससे लाभ अधिक होता है। इस उपवास को करने से भोजन में अरुचि मिटती है सिर दर्द सही होता है सुस्ती आलस्य अन्य मानसिक रोगों में इससे बहुत लाभ मिलता है। 
लघु उपवास 
   जो उपवास कम समय के लिए किया जाता है। वह लघु उपवास कहलाता  है। उसे अपनी इच्छा अनुसार अपनाया जा सकता है इसकी अवधि 3 दिन से 7 दिनों तक हो सकती है।
दीर्घ उपवास 
   एक होता है दीर्घ उपवास मतलब बड़ा उपवास। जो 21 दिन से लेकर के 50 से या 60 दिन का भी हो सकता है। इस उपवास को करने के लिए पहले बहुत सारी तैयारियां करनी पड़ती हैं और कुछ सावधानियों का भी ध्यान रखना पड़ता है। इसलिए दीर्घ उपवास के ऊपर एक अलग से ब्लॉग लिखा जाएगा जो केवल दीर्घ उपवास के ऊपर ही होगा। 


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